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मेरे लफ़्ज़ों से उनके दिलो तक (भाग 1)


ये मुल्क फिर बार लोकतंत्र ढूंढने को निकल आया है।
- May 24, 2024

इस हकीकत में, तन्हाई का क्या बीज बोया है,
किसी गुमनाम अंधेरे में इंसानियत जो खोया है;
भटकते देखा है तानाशाही के अंधेरे में उन सब को मैने,
फिर भी ये मुल्क लोकतंत्र ढूंढने को निकल आया है।

वैसे इंसानियत किस अंधेरे में खोया है ?
कुछ अपनो ने बेइमानी का जाल जो पिरोया है;
बिक जाता है ईमान कुछ बेचारो का इन सब में,
फिर भी ये मुल्क लोकतंत्र ढूंढने को निकल आया है।

अब तो कीमत भी होती है लाशों की अपनी,
बिकते इंसानियत को मुर्दा जो देखा है;
अब दो वक्त की रोटी भी कहां नसीब है इस जंजाल में,
फिर भी ये मुल्क लोकतंत्र ढूंढने को निकल आया है।

खतरे में है लोकतंत्र, कुछ को समझ ही कहा आता है,
सच है भैया, अंधेरे में अंधे को आखिर दिखता ही कहा है;
कोई सहारा नहीं, इन लोगो का इस तानाशाही में भी,
फिर भी ये मुल्क लोकतंत्र ढूंढने को निकल आया है।।

पत्रकार दिखाते है, अंधो को लंगड़े का सहारा देते,
गूंगा भी अब बोल सकता है, बहरे की आवाज से;
क्या सच है कड़वा इस तानाशाही हवानियत का ये,
फिर भी ये मुल्क लोकतंत्र ढूंढने को निकल आया है।

अब दिखती है मुझे तानाशाही हर एक सरकार में,
सहारे को अपंग देते ये नेता जो उपहार में;
अब कह भी दो कुछ लाज़मी तो गुनाह जैसे कर दिया है,
फिर भी ये मुल्क लोकतंत्र ढूंढने को निकल आया है।

कही भुला तो नही दिया सन सत्तावन को तुमने,
क्या इतिहास जो ये हमने जग में बनाया है;
तब भी उखड़ फेकी थी तानाशाही की नीव को हमने,
एक बार फिर ये मुल्क लोकतंत्र ढूंढने को निकल आया है।

अब भी है वक्त तुम जाग जाओ मेरे देश वासियों,
इतिहास में मैने तानाशाही को गिरते देखा है;
उठा लो हथियार, अपने मतदानो के अधिकार,
देखो कैसे ये मुल्क फिर बार लोकतंत्र ढूंढने को निकल आया है।


कमबक्थ मौत है वो, लेने आती है मेरा आज।
- May 22, 2024

तन्हाई में गूंजती है, ये कोई जालिमा सी आवाज
बेहया मेरे जिंदगी की लेजाने आती है वो मुमताज
बफादारी निभाती है वो रूह से मेरी,
दिखाती है अपने अशिकाने की मिराज
कमबक्थ मौत है वो, लेने आती है मेरा आज।

जिंदगी के लिबास को खोलती यू तन्हा
बेझिझक वो दिखती है अपने राज
खतरो संग भटकती, वो शमसान की जवानी
छोड़ जाती है, वो कफन में, दफन कर कई राज।
कमबक्थ मौत है वो, लेने आती है मेरा आज।

शायद दिखाती है अपनी, नशीली गर्म आदये 
फिर कहा याद रहता है कोई काम काज
तानाशाह है वो जिंदगी की, नशा कराती अपनी तन्हाइयो में
होठ लड़ती है, वो अमावस में बेलीबास 
कमबक्थ मौत है वो, लेने आती है मेरा आज।

फिर आखिर में वो आती, अपने यौवन खोल के
कैद कर ले जाने, मुझे वो बेहिजाब
हसीन सी दिखती है उन होठों वो हसी,
फिर बेजुबा छोड़ जाती है, मेरी आवाज़
कमबक्थ मौत है वो, लेने आती है मेरा आज।

तुम वो चांद सी मौत हो, जो अपने बदन में कैद कर ले जाती हो।
- May 22, 2024


चांद कहो तो तुम शर्मा सी जाती हो 

अपने आसमां में यू बदली-बदली सी नज़र आती हो 

हम तारे है नाजुक, यू टूट जाते है उन लाबो पर

फिर छूते ही तुम हमे अपनी चांदनी चमक जो दिखाती हो

जब यू करीब आके मौका भी मिले 

अपने लफ्ज़ो से भला क्यों मुकर जाती हो।

इश्क के नाम पे यू करीब जो तुम आती हो 

तुम वो चांद सी मौत हो, जो अपने बदन में कैद कर ले जाती हो।


सोमा सी चमक तुम जो दिखाती हो।
- May 22, 2024

तुम आसमा में फैली कोई कल्पना हो, शायद यादों का अटूट बंधन हो 
असीम जवानी की सीमा से तुम उस लहंगे में क्या चीज हो 

मेरे सपनों में सुलगती आग हो, आशाओं की तुम मुमताज हो
मेरे दिलो के आंगन की रौनक, तुम हर मौसम में लाजवाब हो

सुरीले है तुम्हारे लावज़ो भरे होठ, शायद संगीत की तुम की राग हो
दिशा दिखाते है ये होठ तुम्हारे जाम का, तुम मेरे लबों का अनुराग हो ।

फूलो सी तुम्हारी कोमल है त्वचा , तुम रेत में लिपटी कोई मिराज हो
लहंगे की छाया में लिपटी, इन रातों में छुपाती तुम राज हो।

अनोखी है तुम्हारी रेतीली कमर, तड़पाते हमे क्यू तुम जाती हो
अंचल में छिपी उस रेशम को, इन हाथो क्यू ना तुम थमती हो।

खुदा का ये लिबास है तुमको, मेरे कविता की अब तुम कल्पना हो 
उन भीगे जुल्फो से बहते जो पसीने, मेरे शब्दो की संवेदना हो।

आदाओ में खेलती बेलिहाज हो, बीते हुए कल की तुम मेरी आज हो
कही खो सी गई हो मौत की गहराई में, मेरे लावजो में की तुम आवाज हो।

हवाओ में महकते है तुम्हारे इत्र जिस्म के, मेरे लवजो जिंदा तुम आज हो 
लिपटी है मेरी सासे तेरी करधनी सी, मेरी गजलो की तुम रिवाज़ हो। 

फिर जब गिर जाती है तुम्हारी बदन की कलिया, किसी शाम सी सावली यू नजर आती हो
फिर होती है हरकते किसी अंधेरी रातों में, सोमा सी चमक तुम जो दिखाती हो।

बहना...ज़रा ध्यान से सुनना.....
- May 22, 2024

"हर रिश्ते से बढ़कर इस रिश्ते का, अब शायद वो समय आ गया है
बीते हुए बचपन का ये साथ, अब छुटने को आया है।

सारी उम्र बिता ली, यू लड़ते झगड़ते साथ हमने जो
अब दिल में प्यार और बिचड़ने का ये वक्त जो आया है। 

अरे ये भाई-बहन का रिश्ता ही, कुछ अनोखा सा होता है, 
भला ये लफ़्ज़ों से कहा बया होते हुए आया है। 

उम्र बीत जाती है, कुछ पल पीछे छूट जाते है
हमारी इस खामोशी के आसुओ, में वो बहता जो आया है।

ना जाने कब और कैसे गुज़र गए ये खुशी के लम्हें, 
शायद वो बचपन का साथ हमसे यू विदा लेने आया है।

आज वो दिन जो आया है तुम्हारी विदाई का, 
ना जाने क्यों मेरे आँखों में पानी भर लाया है।

तू फिकर ना कर, मैं रो नही रहा,
बहना, अब तुझसे विदा लेने का वक्त ये आया है × 2" 


 मैं स्त्री हु, मैं नारी हू
- May 22, 2024

मैं स्त्री हु, मैं नारी हू 
मेरी उम्मीद कई रिश्तों की रेखा है
फिर भी समाज में भटकती यहां वहा 
शायद ये जिस्म समाज में कोई सुरेखा है।
बचपन बीत जाता है, मेरा मेरे ही घर में 
फिर बेदखल होती, मैने खुद को देखा है
अपनो ने दूसरो का जो दर्जा दिया
दान दिया ऐसे, जैसे कोख से कोई पराया है।
अब पिता को गले लगाती मैं दुल्हन सी 
खुद को विदा होते अपने ही घर से देखा है...
वरमाला है जो पति की निशानी 
वो जेवर खोल के उसे भी जिस्म अपना बेचा है।
फिर घर की जिम्मेदारियों को उठाते उठाते
अपने मौसम को ढलते यू देखा है
फिर भी शिकायत रहती है, मुझसे सबको
किसी रोज मौत को आते तब देखा है।
मैं स्त्री हु, मैं नारी हू 
मेरी उम्मीद कई रिश्तों की रेखा है
फिर भी समाज में भटकती यहां वहा 
शायद जिस्म समाज में कोई सुरेखा है।

जो कभी हमारा था, अब हमरा न रहा।
- May 22, 2024

जिंदगी की इस मोड़ पे, मैं भटकता आवारा रहा 
उनके अशिकाने होठों का किनारा न दिखा 
चलते चलते जब मिली यू मंजिल एक दिन 
खड़ा उसकी लाश को देखता बेचारा रहा।

बेचैनी थी मेरे लबों को उनके होठ चूमने की 
बेजान उन लबों में का कोई सहारा न रहा 
दुल्हन सी सजी थी, अपनी कातिल आदाओ में
जो कभी हमारा था, अब हमरा न रहा।

कोई फायदा नही अब उनके बदलने से।
- May 22, 2024

क्या फायदा वो रुकने से रही, 
भला क्या होगा मेरे जाने से, 

जो हो गया है, वो बदलेगा नही, 
मेरे उनको यू समझने से ।

कच्ची थी हमारी उम्मीद की डोर, 
क्या फायदा उसको पकड़ने से 

अब दूर ही रहना है, 
क्या फासला इतने फासले होने से,

उन्हे अब फर्क ही कहा पड़ेगा, 
अब मेरे उनको बुलाने से।

अब जब हार ही चुके है मुहब्बत से हम,
कोई फायदा नही अब उनके बदलने से।

अपने दिल से भी ज़्यादा, तुम्हें प्यार करता हूँ....
- May 07, 2024

बताओ बातों में तकरार करता हूँ
आखिर यही तो जो मैं प्यार करता हूँ
रूठ जाता हूँ यूं छोटी छोटी बातों पर
फिर नाराज़गी भी मैं बेसुमार करता हूँ।

वैसे बातें भी करता हूँ छोड़ जाने की
मोहब्बत भी मैं कमाल की करता हूँ
कहीं लग ना जाए तुम्हें किसी फरेबी की नज़र
मैं, फरेबी, अपने लव्ज़ों से प्रहार करता हूँ।

फिर देख के घाव, तुम्हारे दिल के ज़ख़्म
उन्हें यूं करीब आके कुछ इलाज़ करता हूँ
शायद तुम हो न सकी मेरे दिल की अमानत
अपने दिल से भी ज़्यादा, तुम्हें प्यार करता हूँ।

आपकी इन आदाओं की इबादत करना चाहता हु
- May 06, 2024

आपकी इन आदाओं की इबादत करना चाहता हु 
कुछ गलती करके फिर आपसे माफी चाहता हु 
क्या शर्म है , मुहब्बत हो आप जो मेरी 
आपकी खुली बाहों में, बेशर्म कुछ हरकत करना चाहता हु।

आप दे दोगी सजा, इस मोहब्बत में अगर 
कुबूल है मुझे, जरा सुनना चाहता हु,
पर शर्त है, आपके उस होठों के जाम की 
बिना खत्म किए, मैं जाना नहीं चाहता हु।

हर एक दिन आपकी यादों में गुजरना चाहता हु
फिर एक रात आपके बदन से महकना चाहता हु
आती है आपके जिस्म की खुशबू, मेरे कपड़ों से,
हर रात आपको बेलीबास जिस्म में, इन कपड़ो पे लिपटा पाता हु।

आपके नज़रों का इश्क़, क्या होठो से बहता है,
उस शहद को यू घंटो पीना चाहता हु
फिर घंटो ये घूट मोहब्बत की पीते पीते,
यू आपके बेलीबास जिस्म की नदी में नहाना चाहता हु।

आपकी इन आदाओं की इबादत करना चाहता हु 
कुछ गलती करके फिर आपसे माफी चाहता हु 
क्या शर्म है , मुहब्बत हो आप जो मेरी 
आपकी खुली बाहों में, बेशर्म कुछ हरकत करना चाहता हु।

बेलीबास, वो हसीन मुझे अब लेने आई है....
- May 06, 2024

ढलती शाम वो मेरे धड़कनों की दहलीज पर आई है 
थोड़ी सी शिकायत, थोड़ी बेचयनी वो साथ लाई है 
यू शर्माती हुई वो उस महंगे लिबास में, 
कमर पे लहंगा पहन के वो शमशान सी मानो आई है

कुछ खिले गुलाबो सी, उन होठों पे लाली छाई है।
उन नजरों में मेरे मौत की खबर, शायद वो लाई है
जैसे सूखे सुमन कुछ बंद किताबो में,
वैसी ही महक, कुछ मेरे जिस्म से लिपटी उस लहंगे में आई है।

कहती है, "मुझे पकड़ लो, मेरे कर से"
अपने होठों से मेरे लबों का रूह वो पीने आई है
हां सच है, कितनी हसीन है मेरी मोहब्बत मेरी,
अंजान सी मुझको, किसी वीरान ले जाने आई है।

नज़रों में मोहब्बत, हरकतों में थकान सी उनकी छाई है,
मेरे आसुओ से वो अधूरी आशिकी, वो पीरोने आई है।
फिर खोल के लहंगा, शमशान की वो अमानत,
वो बेलीबास मौत सी, मुझे लेने आई है।

सच है जनाब कितनी हसीन एक मौत आई है 
अपने होठों से मेरे रूह का जाम चखने वो आई है 
कहती है, "छू लो ज़रा जहा भी दिल चाहे तुम्हारा"
बेलीबास, वो हसीन मुझे अब लेने आई है।

ये लोग, बिना बताए, यू धोखा दे जाते है
- May 03, 2024

जाते जाते यहीं लोग कुछ यादें छोड़ जाते है 
फिर जाते जाते इन्ही आखों में धूल झोंक जाते है 
तब इन ख्वाबों में, उन अतीत की यादों को 
बिना बताए, बस वो अपने महफिल को चले जाते है।

जब सहारा था मैं ऐसे ही कुछ लोगो का 
बस अपनी तस्फीर पुरानी वो दे जाते है 
क्या खाक कहू, ऐसे भी रिश्ते होते है 
जख्म देके, यू अपने निशान छोड़ जाते है। 

फिर ले जाते है, वो मेरी खिली हुई मुस्कान 
बिना बताए, किसी और राह को चले जाते है 
वैसे घंटो बाते वो करते करते, 
ये लोग, बिना बताए, यू धोखा दे जाते है ।

जिंदगी लंबी है इस कदर, बिना रुके बस चलते चले....
- April 09, 2024

चलो साथ इस सफर में बढ़ते चले 
हर पलो को यू समेटते चले
गुमनाम अतीत के इस अंधेरे में भी 
बस हाथ पकड़ थोड़ा बढ़ते चले।
आओ मेरे बच्चो साथ चले 
जिंदगी लंबी है इस कदर, बिना रुके बस चलते चले।

हम बचपना छोड़ थोड़ा आगे चले
इन आखों में वो बचपन यू देखते चले
जिंदगी की गोद में छोड़ आए वो लम्हे जो हम
उन्ही लम्हों से नया कुछ सीखते चले,
आओ मेरे बच्चो साथ चले 
जिंदगी लंबी है इस कदर, बिना रुके बस चलते चले।

कुछ वक्त पीछे छोड़ते चले,
चलो इस नए वक्त में बढ़ते भी चले,
कुछ बिखरे से नाजुक इस बचपन को भी,
नया सीखते बस यू चलते चले 
आओ मेरे बच्चो साथ चले 
जिंदगी लंबी है इस कदर, बिना रुके बस चलते चले।

चलो इस उम्मीद में ये गीत गाते चले,
पहाड़ों को लांघ समुंदर पार चले,
इतिहास लिखा जो अपनो ने,
आओ कुछ नया इतिहास बस यू लिखते चले।
आओ मेरे बच्चो साथ चले 
जिंदगी लंबी है इस कदर, बिना रुके बस चलते चले।

ना चाहते हुए भी किसी और की बाहो मे लिपट के आयी...
- March 26, 2024


वो अपने बागबान को बेगान दे आयी,
अपने सीतारो को आस्मां में बिखेर आयी।
बादलो को अपना ये चांद दिखा कर,
अपनी समुंदर सी आखों को नम करके आयी।
ना चाहते हुए भी, किसी और की प्यास बुझाई,
वो खफा है इस किस्मत से, किसी और की बाहो मे लिपट के आयी।

वो जिस्म के शहर में रूह बेच के आयी,
अपने इश्क को हया बेच के आयी।
मोहब्बत के नाम पर धोखा वो खाती,
ये सारी खुशी, उन गेमो को बीच के आयी।
ए खुदा, वो अपनी ज़िन्दगी बेच के आयी,
ना चाहते हुए भी किसी और की बाहो मे लिपट के आयी।

(ये उन लड़कियों के लिए है, जिन्होंने अपनी जिंदगी किसी हैवान को बेच दी है)

मानता हूं कि गलत था मैं, सही होने का फर्ज़ तुम निभा देती......
- March 26, 2024


माना कि मैं गलत था, 
सही होने का फर्ज़ तुम निभा देती।

अगर रूठा हु इस कदर,
 तुम ही आके मुझे मना लेती।

जमाना ये खराब है, मतलबी है ये दुनिया,
कम से कम तुम ही निश्वर्थ, चली आती।

इतने दिनों से पुकारते इस दिल को, 
क्यू नही यू चूमती ?

क्या जवाब मै देता तुम्हारे बेवजह जाने पर, 
एक बार मुझे समझा के तो जाती।

फिर मानता हूं कि गलत था मैं, 
सही होने का फर्ज़ तुम अदा कर देती।



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Syntatic Functions

INTRODUCTION →When a Subject agrees with its verb. → It can only be expressed in the form of grammatical numericals. i.e. Singular(One in Quantity) and Plural(More in Quantity).  SYNTATICAL RELATIONSHIP BETWEEN SUBJECT AND VERB → Singular Subject with Singular Verb  → Plural Subject with Plural Verb  → Rules of adding 's' is different, according to the condition of sentence. SOME SYNTATIC RULES 1) Rule of Articles ® Use of double articles with double Subjects in a Sentence with conjunction 'And' → Plural Verb. E.g. The Captain and The Falcon were good Friends. ® Use of Single Article with Double Subjects taking that Singular Article common → Singular Verb. E.g. The Falcon and Captain America is very Powerful. 2) Rule of 'And' ® If Two proper Nouns are together connect with conjunction 'And', then it is manifestly  a plural verb acting over there. E.g. Shero and Soma are playing together with Ris...